बौद्धिक संम्पदा क्या है ?
बौद्धिक संपदा अधिकार रचनाएं, कलात्मक और वाणिज्यिक, दोनों के संदर्भ में विशेष अधिकार के समुह हैं। प्रथम अधिकार काॅपीराईट कानुनों से आवृत हैं, जो रचनात्मक कार्याे, जैसे पुस्तकें, फिल्में, संगीत, पेंटिंग, छाया-चित्र और साॅफ्टवेयर को संरक्षण प्रदान करता है और काॅपीराइट के अधिकार-धारक को एक निश्चित अवधि के लिए पुनरूत्पादन पर या उसके रूपांतरण पर नियंत्रण का विशेष अधिकार देता है। दूसरी श्रेणी, सामूहिक रूप से औद्योगिक संपत्ति के रूप में मानी जाती है, क्योकि इनका उपयोग विशिष्ट रूप से औद्योगिक या वाणिज्यिक प्रयोजनों के लिए किया जाता है और पेटेंट धारक को दूसरों को आविष्कारक द्वारा बिना लाईसेंस दिए एक निश्चित अवधि के लिए आविष्कार के अभ्यास से रोकने का अधिकार प्रदान करता है।
बौद्धिक संम्पदा कानुन:-
भारतीय बौद्धिक सम्पदा कानुन, ऐसा कानुन है,
जो ट्रेड रिलेटेड आस्पैक्टस आॅफ इंटैलेक्ट्जूल प्राॅपर्टी राइट्स (TRIPS) के अंतरराष्ट्रीय समझौते के अंतर्गत आता हैं। इसे 1 जनवरी 1995 को लागू किया गया था। इस समझौते में शामिल सदस्य देशों को अंतरराष्ट्रीय व्यापार में कानुनी सुरक्षा प्रदान की जाती है। भारत में भी यह प्रशासनिक और न्यायिक स्तर पर काम करता है।
यह समझौता बौद्धिक संपदा के जिन क्षेत्रों को समाहित करता है वे हैः-
पेटेंट- तकनीक से जुड़े सभी क्षेत्रों में अगर कोई खोज या आविष्कार नया है और औद्योगिक उपयोगिता रखता है, तो उसे पेटेंट कराया जा सकता है। ट्रिप्स समझौते के अतर्गत ऐसी खोजी को पेटेंट कराने से छूट दी गई है, जिनका सार्वजनिक हित से संबंध है, जैसे मानवता, पशु-जगत, स्वास्थ्य, वनस्पति आदि। किसी सदस्य को अगर यदि इसके व्यावसायिक दुरूप्योग का खतरा लगता है, तो वह पेटेंट कराने में छूट ले सकता है।
ट्रेड मार्क- इसके अंतर्गत किसी वस्तु या सेवा क्षेत्र में कोई एक चिन्ह या चिन्हों के समूह को ट्रिप्स द्वारा मान्यता दी जाती है। इस समझौते के अंतर्गत किसी भी ट्रेड मार्क का सात साल के लिए पंजीकरण कर लिया जाता है। भारत ने व्यापार में हो रहे वैश्वीकरण को देखते हुऐ ट्रेड एण्ड मर्चेन्डाइस एक्ट, 1958 में सन् 1999 में बदलाव किया।
काॅपीराईट- भारत ने बर्न अधिवेशन को मद्देनजर रखकर भारतीय काॅपीराइट एक्ट, 1957 को संशोधित करके 1999 में नया भारतीय काॅपीराइट कानून बनाया। इस कानून में समय-समय पर संशोधन किए हैं, जिसमें उपग्रह बा्रडकास्टिंग, कम्प्युटर साॅफ्टवेयर और डिजिटल तननीक शामिल हैं।
भौगोलिक पैमाना (Geographical indications)- यह समझौता किसी भौगोलिक क्षेत्र से जुड़ी किसी विशेष वस्तु को अन्य किसी क्षेत्र या सदस्य के पेटेंट कराए जाने का विरोध करता है। जैसे अगर तुलसी भारत का उतपाद है, तो भारत ही उसके पेटेंट का हकदार होगा। परंतु अगर उस उत्पाद का उसके उत्पन्न होने वाले भोगौलिक क्षेत्र में दुरूप्योग किया जा रहा है, तो वह इस समझौते से बाहर माना जाएगा।
औद्योगिक योजना (Industrial |Designs)- औद्योगिक नमूनों को भी बौद्धिक संपदा का हिस्सा माना गया है। इस समझौते का मुख्य उद्देश्य औद्योगिक उत्पादन में नए नमूनों या योजनाओं को बढ़ावा देना और उनकी रक्षा करना है। वर्तमान में भारत का न्यू डिजाईन एक्ट, 2000 औद्योगिक योजनाओं और नमूनों को प्रोत्साहित कर रहा है। इससे विश्व स्तर पर भारत ने औद्योगिक नमूनों में अपना अच्छा स्थान बना लिया है।
भारतीय बौद्धिक संपत्तिः-
भारत अपनी बोद्धिक संपत्ति की सुरक्षा या पेटेंट कानून को लेकर वल्र्ड ट्रेड आॅर्गनाईजेशन का पूर्णतः अनुसरण कर रहा है।
1. WTO के पेटेंट कानून की धारा 3 (डी) का संपूर्ण विश्व अनुसरण कर हा है। परंतु इसमें सुधार की जरूरत है, चाहे वह फार्मा कंपनियों को नापसंद ही क्यो न हो।
2. फिलहाल फार्मा कंपनियां इस बात से खुश हैं कि उनकी पेटेंट दवाईयों पर किसी सरकार की थोक मांग पर भी वे छूट देने के लिए बाध्य नहीं है।
3. यह समस्या अब टेलीकाॅम जैसे इलेक्ट्रानिक क्षेत्र में आने लगी है। भारतीय कंपनियां किसी भी ऐसी नकनीक का लाईसेंस नही लेना चाहतीं, जिसमें पेटेंटधारक के साथ कोई वैधानिक विवाद हो।
4. इससे भी बड़ी समस्या यह है कि भारतीय फर्म बौद्धिक संपत्ति बढ़ाने वाले किसी भारतीय फर्म बौद्धिक संपत्ति बढ़ाने वाले किसी अनुसंधान या विकास में लगातार असफल रही हैं। भारतीय व्यापार, कस्टम ड्युटी और टेक्स नियम भी घरेलु अनुसंधान को बढ़ावा नहीं देते ।
5.बौद्धिक संपदा को बढ़ावा दने के लिए विश्वविद्याालयों को अनुसंधान के लिए धन देना, कानुनी पारदर्शिता, कानूनी सुरक्षा तथा व्यापार-वाणिज्य नीतियों का तार्किक होना बहुत जरूरी है।