अभी हाल ही में वर्ष 2018 अप्रेल जून के तिमाही
में आर्थिक विकास दर 7.5 प्रतिशत रही जो चीन, जापान, अमेरिका
जैसे देशो से भी अधिक थी। विष्व के कुछ चुनिंदा सर्वार्धिक
आर्थिक विकास दर रहने वाले देशोमें भारत का नाम उपर या तथा विष्व के देशो की सर्वाधिक ऊॅंची विकास दर की सूची में था।
भारत भले ही दुनिया की सबसे अधिक तेजी से
विकसित होने का दावा करें, लेकिन
इस दावे की बुनियाद काफी खोखली हैं। आर्थिक विकास के लिये शिक्षितऔर
कौशलयुक्त कामगारों का होना अत्यंत आवशयक हैं। भारत में शिक्षा पर खर्च किये जाने वाले धन में लगातार काटौंती
की जा रही हैं। हमारें देशमें हमेशा से ही प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा के बजाय उच्च शिक्षा पर हमेशाअधिक ध्यान दिया गया हैं। यह उसी तरह
है जैसे किसी भव्य भवन को कमजोर नींव पर खड़ा करने का प्रयत्न किया जाए।
आज भारत का एक भी विश्वविद्यालयऐसा नही है जिसकी गिनती दुनियां के 200
सबसे अच्छे विश्वविद्यालयों में होती हैं। नरेन्द्र मोदी की सरकार ने शिक्षाके
लिये बजट में करीब 25 प्रतिशत कमी कर राशि को 82771 करोड़ से कमकर 69074 करोड़ कर
दी। दूर-दराज के इलाकों मे बसे गांवो के स्कूलों की हालात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता हैं
कि देशकी राजधानी दिल्ली के सरकारी स्कूलों तक में शौचालय और पीने के पानी
जैसी बुनियादी सुविधाओं की भी व्यवस्था नही हैं। स्कूलों के लिये भवन व
विद्यार्थियों के लिये टेबल-कुर्सी का भी इंतजाम नही हैं। ऐसे में यदि देशके
57 प्रतिशत छात्रों के पास रोजगार प्राप्त करने की क्षमता प्रदान करने वाला कौशल
नही हैं तो इसमें आश्चर्यकी क्या बात?
नोबेल पुरस्कार प्राप्त अर्थशस्त्री अर्माल्यसेन
हमारी भारत सरकारों की आलोचना करते रहें क्यूकि उनके अनुसार भारत में अब तक शिक्षा और स्वास्थय पर पूर्ण रूप से ध्यान नही दिया गया
हैं। अर्मत्य सेन कहते हैं। कि मानवीय क्षमता में वृद्वि होगी और कौशलयुक्तश्रमशक्ति
उपलब्ध होगी तभी आर्थिक विकास स्थायी रूप से होगा। उनका यह भी कहना है कि रोजगार
अवसर उपलब्ध कराना और लोगों को रोजगार के लिये सक्षम बनाना किसी भी सरकार का
प्रमुख दायित्व हैं।
एक सर्वेक्षण के अनुसार लगभग 75प्रतिशत
अध्यापकों का मानना हैं। कि शिक्षा छात्रों के सर्वांगीण विकास पर केन्द्रित नही
हैं। ग्रामीण इलाकों के चौथी के छात्र पहली कक्षा का पाठ्यक्रम भी ठीक से नही
जानते हैं। कुछेक आईआईटी या आईआईएम खोल देने से समुचे देशकी शिक्षा का स्तर ऊंचा नही उठता है। शिक्षा को निचले स्तर से उसे उपर उठाने का प्रयास करने
की और जरूरत है जिससे हर स्तर पर सुधार हो।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मेक इन इंडिया
का नारा दिया और विश्व के उद्योगपतियों को आमंत्रित किया। भारत में उद्योगपतियों
को कुशल श्रमशक्ति उपलब्ध हो इसके लिये शिक्षामेंआवशयकबदलाव किया जाए और उचित धन खर्च किया
जाए अन्यथा भारत में शिक्षित बेरोजगारों की संख्या बढ़ती ही जायेगी।